Sunday, April 19, 2009

कथा धैर्य की

कथा है,
नारद वैकुण्ठ जा रहे हैं| मार्ग में उन्हें एक वृद्ध साधु मिला, वृक्ष के नीचे|
उस साधु से कहा की तुम प्रभु से पूछ लेना कि मेरी मुक्ति को अभी कितनी देर और है| मुझे मोक्ष कब मिलेगा?
नारद ने कहा: ठीक है लौटते में जरूर पूछ लूँगा|

पास में उसी दिन दीक्षित हुआ एक फ़कीर अपना तम्बूरा ले के नाच रहा था| नारद ने मजाक में उससे भी कहा: तुम्हे भी पूछना है क्या?
वह फ़कीर कुछ ना बोला|
नारद वापस लौटे, उस वृद्ध साधुके पास जा कर कहा: मैंने पूछा था ईश्वर से| उन्होंने कहा कि अभी तीन जन्म और है|
उस साधु ने अपनी माला नीचे फेंक दी और कहा अन्याय है| कितना धीरज रखूं?

नारद आगे बढ़ गए| अभी भी उस वृक्ष के नीचे नया नया दीक्षित हुआ फ़कीर नाचता था|
नारद ने कहा: सुनते हो। तुम्हारे सम्बन्ध में भी पूछा मैंने| प्रभु ने कहा है कि वह जिस वृक्ष के नीचे नाच रहा है, उसमे जितने पत्ते हैं, उतने जन्म उसे साधना में लगेंगे| उसके बाद ही उसे मुक्ति प्राप्त हो सकेगी|

वह फ़कीर बोला: बस इतने ही पत्ते| "तब तो जीत लिया"| जगत में कितने पत्ते हैं| इस वृक्ष पर तो बहुत कम हैं|
वह फिर से नाचने लगा| और कथा कहती है, वह उसी क्षनद मुक्त हो गया|

सीख: धैर्य ही मुक्ति का साधन है| अधैर्य लम्बा करता है| अधैर्य समय मेहनत व साधना का नाश करता है|

ये कथा "साक्षी की साधना " लेखक -ओशो से उधृत है|

3 comments:

  1. this implies either narad or god is a lier :P

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  2. Sorry to those who cannot read hindi. i"ll try to translate it asap

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  3. Hey thanks invisibleink. By telling this you also gave me insight that yes if you act properly you can change your fate too [:)]

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