कथा है,
नारद वैकुण्ठ जा रहे हैं| मार्ग में उन्हें एक वृद्ध साधु मिला, वृक्ष के नीचे|
उस साधु से कहा की तुम प्रभु से पूछ लेना कि मेरी मुक्ति को अभी कितनी देर और है| मुझे मोक्ष कब मिलेगा?
नारद ने कहा: ठीक है लौटते में जरूर पूछ लूँगा|
पास में उसी दिन दीक्षित हुआ एक फ़कीर अपना तम्बूरा ले के नाच रहा था| नारद ने मजाक में उससे भी कहा: तुम्हे भी पूछना है क्या?
वह फ़कीर कुछ ना बोला|
नारद वापस लौटे, उस वृद्ध साधुके पास जा कर कहा: मैंने पूछा था ईश्वर से| उन्होंने कहा कि अभी तीन जन्म और है|
उस साधु ने अपनी माला नीचे फेंक दी और कहा अन्याय है| कितना धीरज रखूं?
नारद आगे बढ़ गए| अभी भी उस वृक्ष के नीचे नया नया दीक्षित हुआ फ़कीर नाचता था|
नारद ने कहा: सुनते हो। तुम्हारे सम्बन्ध में भी पूछा मैंने| प्रभु ने कहा है कि वह जिस वृक्ष के नीचे नाच रहा है, उसमे जितने पत्ते हैं, उतने जन्म उसे साधना में लगेंगे| उसके बाद ही उसे मुक्ति प्राप्त हो सकेगी|
वह फ़कीर बोला: बस इतने ही पत्ते| "तब तो जीत लिया"| जगत में कितने पत्ते हैं| इस वृक्ष पर तो बहुत कम हैं|
वह फिर से नाचने लगा| और कथा कहती है, वह उसी क्षनद मुक्त हो गया|
सीख: धैर्य ही मुक्ति का साधन है| अधैर्य लम्बा करता है| अधैर्य समय मेहनत व साधना का नाश करता है|
ये कथा "साक्षी की साधना " लेखक -ओशो से उधृत है|
Sunday, April 19, 2009
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this implies either narad or god is a lier :P
ReplyDeleteSorry to those who cannot read hindi. i"ll try to translate it asap
ReplyDeleteHey thanks invisibleink. By telling this you also gave me insight that yes if you act properly you can change your fate too [:)]
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