Saturday, July 11, 2009

प्रभु के दर्शन के प्रश्न और कुछ विचार

लोग प्रश्न करतें है कि साधक को किस रूप में प्रभु की आराधना करनी चाहिए?
इसका उत्तर महर्षि अंगिरस कुछ इस तरह से देते हैं :
पुत्र तुम जिस सरलता से अन्य जीवो के साथ तादात्म्य कर सकते हो, उनमें ईश्वर को देखते हो, वैसे ही अपने अन्दर भी देख सकते हो| यदि आत्मा में स्थित हो कर, आत्मस्थ होकर देखोगे तो प्रतेयेक जीव में वाही दीखाई देगा, और वह तुम से भिन्न नही होगा| यह सृष्टि तो उसी का विराट रूप है| सारा उसी का प्रपंच है| वह हमारे भीतर है, और हम उसके भीतर हैं|

अब प्रश्न ये उठा है की ये जानना काफी है क्या? ये तो सभी जानते हैं अथवा भनक है - फ़िर ?

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