Thursday, July 9, 2009

नारी के रूप

" एक शरीर में रहते हुए नारी माँ नहीं होती| माँ की दृष्टि में छमा होती है, मन में वात्सल्य होता हैऔर दान में हाथ उठा है; नारी की दृष्टि में निषेद और आलोचना, मन में कामना और हाथ याचना में फैला होता है| माँ का समर्पण का सात्विक जीवन जीती है; नारी समर्पित नहीं बल्कि समर्पण मांगती है| सरलता का कोई तत्व उसके निर्माण में होता ही नहीं है|"

उधृत: 'कर्म" - लेखक नरेन्द्र कोहली

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