Sunday, March 31, 2013

कृष्ण संवाद

दृश्य : इन्द्र पूजा के विरोध से पहले का संवाद
राधा: कृष्ण तुम हर समय लोगो के विरोध में क्यों कार्य करते हो| क्या तुम्हारा लोगो के द्वारा चाही हुई चीजों से विरोध है? क्या तुम्हे पहेले से चले आ रहे रीती रिवाजो का विरोध करने में मजा आता है क्या?
कृष्ण: राधा ऐसी बात नहीं है| मैं इन रिवाजो का विरोध नहीं करता| परन्तु उनका मैं बिना किसी कारण के विश्वास भी नहीं करता| मेरी ललक चाही हुई से अनचाही की ओर अधिक होती है, क्योंकि चाही हुई तो जानी पहचानी हुई होती है| कल्पना में उसे हम थोड़ा भोग भी लेते हैं, पर अनचाही स्थिति में एक अप्र्त्याशितात्ता है| अचानक से उत्पन्न हुआ एक विषमय का भावः है |

और मेरे लिए इष्ट और अनिष्ट में कोई विशेष अन्तर नही है राधा| एक चाही हुई स्थिति है और दूसरी अनचाही हुई|

नोट: यहाँ आखिरी में राधा शब्द का प्रयोग प्रेम दर्शाने का बहुत अच्छा उदाहरण है|

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